Monday, January 21, 2013

A think about baba

पिछले कुछ दिनों से कुम्भ की वजह से इस संगम की रेती पर मुझे चहल कदमी करने का काफी अवसर मिल रहा है माँ गंगा की कृपा से मेरा सौभाग्य है की मै इस पवन धरती पर निवास कर रहा हु। खैर इस मेले में आकर मेरे न जाने कितने विचार बदल गए, मैंने जैसा सोचा था, पढ़ा था उससे काफी कुछ तो मिलता है पर कुछ ऐसी बाते भी है जो खटकती है और न जाने मुझ जैसे कितनो के मन को उद्वेलित और क्रोधित भी करती होंगी, और सोचने पर विवश करती होंगी की, कही कुछ लोग आस्था के नाम पर कही खिलवाड़ तो नहीं कर रहे? आस्था का प्रयोग अपने व्यक्तिगत हितो को साधने के लिए ही तो नहीं कर रहे? एक बाबा से मै मिला उन्होंने रुद्राक्ष की जगह डेढ़ करोर के केवल सोने के आभूषण पहन रखे थे पुछा क्यों? तो उन्होंने ने बताया मुझे बचपन से ही सोने से प्यार था सो मैंने इसे धारण कर लिया और अपने भक्तो से कहने लगा की मुझे केवल दान में सोना ही दे। हाथ में कैमरा और गले में कार्ड लटके होने की वजह से एक अखाड़े के अन्दर घुसने और वहा के बाबाओ से बेबाकी से बात करने का सौभाग्य मिला तो वहा का नजारा देख कर में दंग रह गया। गेट के अन्दर घुसते ही मेरा सामना बी ऍम डब्लू, पजेरो, क्रुसर, जाइलो, सफारी आदि से हुआ। फिर कुछ आगे बढ़ा तो जिस कुटी के अन्दर मेरी नजर जाए वहा-वहा आधुनिक बाबा लोग लैपटॉप, टैबलेट, एसएलआर से लैस होके उस पर साधना करते दिख जाए। जब मेरी उत्सुकता कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी तो मैंने बाबा लोगो से पूछ ही लिया की आखिर बाबा जी ये सब खरीदने का पैसा आता कहा से है? तो हर बाबा का जवाब एक ही रहा सब हमारे भक्त दे जाते है। फिर मै सोचने लगा जब इतना पैसा भक्तो के पास है तो आखिर देश में भुखमरी और लाचारी क्यों है? आप भी सोचियेगा और पूछियेगा। क्या आस्था इतनी अंधी होती है?

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